Friday, February 29, 2008

गीता सार

कर कर्म अभागा मत बन तू । स्वयं भाग्य विधाता अपना बन तू ॥
निष्काम कर्म तू करता जा । सत्या अहिंसा के मार्ग चड़ता जा ॥
तत्व ज्ञान तुम्हे मैं देता हूँ । तेरा मोह भंग कर देता हूँ ॥
अर्जुन तू चिंता त्याग ज़रा । मैं स्वयं देख तेरे पास खड़ा ॥
तुम्हे गीता ज्ञान सुनाता हूँ । भक्त अपना तुझे बनता हूँ ॥
ब्रह्मा , श्रत्रिय , वैश्य क्षुद्र । सब कर्मो से बन जाते हैं ॥
इन्ही वर्णौ से कोई कोई । सन्यासी , कर्म योग अपनाते हैं ॥
अर्जुन ! कर्म टू सब कोई करता । तुम्हे '' सुकर्म '' ज्ञान बताता हूँ ॥
घबरा मत अर्जुन तू भक्त मेरा । भय भ्रम करूंगा दूर तेरा ॥
जो मेरे भक्त बन जाते हैं । प्रिय भक्त सखा बन जाते हैं ॥

सत्य , रज, तम तेरे बन्धन हैं । गुण अवगुण सभी समाये हैं ॥
काम ,क्रोध ,लोभ,अंहकार, मोह । पाँच चोर यही फसाये हैं ॥
अग्नि ,जल ,पृथ्वी की बात क्या । तुझे विराट रूप दिखाता हूँ ॥
मैं स्वयं ही पैदा करता हूँ । मैं स्वयं सभी को खाता हूँ ॥
तू अर्जुन किसी को क्या मारे । सब पहले कर्मो के मारे हैं ॥
मेरा परम भक्त तू है अर्जुन । सब भेद तुम्हे समझा ही दिया ॥
अब मर्जी तेरी है , धनंजय । विराट रूप तुमने देखा है ॥
तन मानव का जो है पाया । शुभ कर्मो का लेखा जोखा है ॥
भय्क्रांत से अर्जुन मूक हुए । कुछ बोलन मुँह से निकल रहे ॥
हे कृष्णा ! तुम्ही टू सब कुछ होमेरे अहम भ्रम सब निकल गए ॥
प्रभु तेरी शरण मी आन खड़ा । जो कहो वही मैं कर पाऊँ ॥
इस युद्ध में धर्म की जीत करो । मैं भक्त तेरा भी तर जाऊं ॥
बस अर्जुन जो मैं चाहता था । तुम्हे गीता ज्ञान सिखाना था ॥
सत्य धर्म की जीत करनी थी । सत्य , अहिंसा का मार्ग दिखाना था ॥
मेरा स्मरण कभी भी कर के देखो । मैं झट प्रगत हो जाता हूँ ॥
सत्य धर्म की रक्षा के खातिर । युग युग अवतार ले आता हूँ ॥
वेदों का सार यह ''गीता'' है । सब ग्रंथो का सार यह वेद ही है ॥
''कपिल कश्मीरी '' धन्य पुरूष है वो । जो गीता ज्ञान ले जीते हैं ॥
श्री कृष्ण चरण की रज ले कर । बन अर्जुन की तरह नित पीते हैं ॥

No comments: