Tuesday, February 12, 2008

ग़ज़ल ........मैं वह फूल नही ''भ्रष्टाचार'' हूँ

मैं वह फूल सतरंगी चमक दार हूँ ।
''खुशबू'' मेरी किसे नही चाहिऐ ?
ज्यादा चाहे थोडी, मैं रहता तैयार हूँ ।
जो मुझसे यारो लगा हाथ मिलाता ।
उसे में कुछ नुकसें ऐसे बताता ॥
ऐ दोस्त ! पाने के लिए कुछ खोना पड़ता है ।
''झूठ मूठ '' का सहारा ले रोना पड़ता है ॥
सच्ची इंसानियत की सफेद चादर को ,
अरे ''खफ्ने मोत्'' ईमानदारी के लिए नही ,
''खुदगर्जी '' की बदबू पर ढकने के लिए ,
सुथरी पाक चादर को भी अजमाना पड़ता है ॥
खुदा के बंदो से लेकर, राजा नवाब तक ,
हर एक के लिए मैं तईयार हूँ ।
मैं वूह फूल ''सतरंगी'' चमकदार हूँ ।
अरे समझदार को इशारा ही काफी ,
मैं वह फूल नही ''भ्रष्टाचार '' हूँ ।
मैं वूह फूल सतरंगी चमक दार हूँ

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