Wednesday, March 12, 2008

भारत मेरा गर्व करे

भारत मेरा गर्व करे । यही हमारा सपना है ॥
अपने पराये का स्वार्थ छोड़ो । प्रेम रासयाँ रसना है ॥
राष्ट्र भक्ति में प्रेम शक्ति है । सर्व सिद्धि की रचना है ॥
सुख स्म्रिधि धन धान से भर दो । क्यों की यह घर अपना है ॥
भारत मेरा गर्व करे .........यही हमारा सपना है ......................................(१)

ध्रुव अटल हमारा भारत राष्ट्र है । जन तंत्र को न आघात हो ॥
मुद्ध मंगलमय सु प्रभात हो । शुर वीरो का तेज प्रताप हो ॥
सश्य ,श्यामल बन खंडो में, मधुर कोकिला सा आलाप हो ॥
बलिदानी वीर सपूतों के राज चरणों को , सिर मस्तक लाकर रखना है ॥
भारत मेरा गर्व करे .....यही हमारा सपना है ................................................(२)

शेत्र वाद व जाती वाद , सब वाद विवाद मिटाने हैं ॥
जन हित राष्ट्र वाद के दीपक , घर घर आज जलने हैं ॥
पुरातन सुनातन संस्कृति से ले , नए अलंकार सजाने है ॥
कृषि , शिक्षा, विज्ञान अनुसाध्नो के नए नए पोध लगाने हैं ॥
भारत मेरा गर्व करे , यही हमारा सपना है .......................................................(३)

परिवार जाती से ऊपर उद् कर , देश हित की बात करे ॥
देश द्रोहियूं को को सबक सीखा दे , सो सो इनको घाट करें ॥
शहीदों के खून अभी सूखे कहाँ हैं । दुश्मन से क्यों बात करें ॥
भारत हमारा बलशाली रहे , बलिदानियों का सच्चा सपना है ॥
भारत मेरा गर्व करे ,यही हमारा सपना है ............................................................(४)

भारत मेरा गर्व करे ,यही कमार सपना है ।
अपने पराये का स्वार्थ छोड़ो ये सारा भारत अपना है ॥

बढे चलो बढे चलो ऐ माँ के लाढ्लो

बढे चलो -बढे चलो ऐ माँ के लाडलो, ........(२)
बहनो के वीर बनो, बिजली और तीर बनो ,
जुल्मी और जाल्मो को मारते चलो -ऐ माँ के लाडलो ॥

दुश्मनू को मारकर , लताड़कर ,पछाड़कर ।
भूचाल सी कम्पन लिए , दहाड़ते चलो ॥
बढे चलो बढे चलो ऐ माँ के लाडलो ...........(२)

पर्वत और चटान हो , जंगल बैयाबान हो ।
भयंकर युद्ध घमासान हो । शोलों भरा आसमान हो ॥
तिरंगा लिए हाथ में उछालते चलो - उछालते चलो।
बढे चलो -बढे चलो ऐ मान के लाडलो ....(२)

आजाद हिंद देश है । एक ही गणवेश है ॥
एक ही उद्येश है । मिला यही निर्देश है ॥
बढे चलो बढे चलो ऐ माँ के लाडलो .... (२)

बहनो के वीर बनो । बिजली और तीर बनो ॥
जुल्मी और जालम को मारते चलो ॥
बढे चलो बढे चलो ऐ माँ के लाडलो ।
बढे चलो बढे चलो ऐ माँ के लाडलो ॥

Thursday, March 6, 2008

काव्य भूगोल (पाठ पहला )

(१) पृथ्वी गोल व दिन रात के कारण -
छात्र कक्षा में गुरूजी से प्रश्न पूछते हैं ।
गुरूजी ! धरती चपटी है या गोल ?
घूम घूम क्यों चक्कर काटे , दिन रात कैसे हो जाते ?
सर्दी ,गर्मी या बसंत । पतझड़ शिशिर कभी हेमंत ॥
वर्ष मास व दिन रात । गुरूजी हमे समजाहो सब बात ॥

गुरु जी :- आओ बंच्चो पदों भूगोल , बताऊं धरती क्यों है गोल ?
(१) सूर्य , चंद्र , नक्षत्र व तारे, बच्चो दिखते गोल हैं सारे ॥
(२) दूर समुन्द्र में नज़र दोड़ाओ । जल में जहाज आता पाओ ॥
ज्यों ज्यों जहाज पास है आता । दिखेगी पहले उंची पताका ॥
उपरी भाग फ़िर निचला हिसा । कारण पृथ्वी गोल का किस्सा ॥
(3) तेज गति की गाड़ी लाओ । एक दिशा दोडाते जाओ ॥
जहाँ से बच्चो दोड लगाई । चक्कर काट वाही फिर आई ॥
पृथ्वी बच्चो गोल न होती । चले जहाँ से व ठोर न होती ॥
चपटी नही है पृथ्वी गोल । इसी को कहते हैं ''भूगोल " ॥
(४) ऊँचा चढ़ जरा नज़र दोड़ाओ , भू नभ को मिलता पाओ ॥
शितिज दिखाई देगा गोल , क्यूंकि हमारी पृथ्वी गोल ॥
(५) ग्रहण में छाया दिखती गोल । क्यूंकि हमारी पृथ्वी गोल ॥


(पाठ -२) दिन व रात
गुरु जी ! बचचो सुनलो आज ये पाठ ।
कैसे बनते हैं दिन रात ?

पृथ्वी घूम रही है ऐसे । तुम्हारे लट्टू घूमे जैसे ॥
जो गोला हो सूर्य के आगे । कहलाये दिन ,अँधेरा भागे ॥
यही भाग दिन कहलाता । प्रातः दोपहर , सायं हो जाता ॥
सांझ ढले सूर्य न दे दिखाई । सम्जोह बरी रात की है आई ॥
पूर्वी गोलार्ध घूम गया आगे । छिप गया सूरज तारे चमकने लागे ॥
संध्या, रात्री , फिर उषा काल । समझ जाओ बच्चो दिन रात का हाल ॥
चोबिस घंटे का पूरा चक्कर लो गिन । बारह रात व बारह घंटे का दिन ॥
पूर्वी गोलार्ध व पश्चिमी गोलार्ध । मनो धरती बटा दो भाग ॥
दैनिक गति बनती दिन -रात । समझे बच्चो भूगोल की बात ॥

बच्चे मिलकर :- गुरु जी सम्जः गए आप की बात ।
कैसे बन जाते हैं दिन व रात ॥


(पाठ ३ ) वर्ष ऋतुएं
(१) बच्चें गुरूजी से ॥ गुरूजी हमे कृपया बताये । वर्ष ऋतुएं कैसे बन जाएँ ?
(2)गुरूजी :- पृथ्वी सूर्य के चक्कर काटे । एक वर्ष छः ऋतुओं में बाटे ॥
(3)छः ऋतुएं और बारह मास । सुन लो नाम ,जरा आओ मेरे पास ॥
(4) ३६५ दिन पूरे व एक दिन का चोथा भाग ।
वार्षिक गति का चक्कर पृथ्वी लगा रही आबाद्ध ॥
(५) गर्मी, पतझड़ और बसंत । सर्दी , शिशिर व हेमंत ॥
(६) प्रतेयक ऋतू रहती दो मांस । प्रकृति भूगोल का सदा यही इतिहास ॥
(७)तीस दिन का मास कहलाता । बारह मास का एक वर्ष ॥
(8)महीनों के बच्चों सुन लो नाम । आयेगा आगे तुम्हारे काम ॥
(९)जनवरी , फरवरी ,मार्च , अप्रिल ,मई , जून , जुलाई , अगस्त , सितम्बर ।
ओक्टूबर , नवम्बर व बारहवां दिसम्बर ॥
तीस दिन सितम्बर के । व अप्रिल ,जून , नवम्बेर के ॥
चोथा वर्ष लीप कहलाता । फरवरी में एक बढ़ जाता ॥
इकतीस दिन के बाकी मास । वार्षिक , ऋतुओं का यही इतिहास ॥
पृथ्वी झुकी ६६.५ अंश सूर्य के आगे । उतरी ध्रुव पीछे कभी दक्षिणी ध्रुव आगे ..








Saturday, March 1, 2008

काव्य गीत -- तेरे मन में,मेरे मन में -एक ही तो राम हो

सुनो भारत के पूत प्यारे । यही एक शुभ काम हो ॥
तेरे मन में मेरे मन में । एक ही तो राम हो ॥
भिन भिन हो आस्थाएं । पर एक ही तो परिणाम हो ॥
मातृ भाव या राष्ट्रीयता का । सदा शुभ परिणाम हो ॥
तेरे मन में मेरे मन में । एक ही तो राम हो ------------------------

अपने को तो सोच पहले । तू में '' मैं '' हो जायेगा ॥
तेरा मेरा मन कृष्ण बन । राष्ट्र को जितायेगा ॥
सुख समृधि से भरे । पुर नगर चाहे ग्राम हो ॥
हे मानव तेरे जीवन में । एक ही तो राम हो ---------------------------- २

धर्मो की शुभ आस्थायएं । एक ही प्रतीत हो ॥
प्रेम भाई चारे के बन्धन । एक रस्में रीत हो ॥
इश्वर भक्ति राष्ट्र भक्ति । सर्व हृदय निष्काम हो ॥
हे मानव तेरे जीवन में । यही एक शुभ काम हो ॥
तेरे मन में मेरे मन में । एक हो तो राम हो ------------------------------३

सत्य धरम की जीत हो । और विश्व का कल्याण हो ॥
सद्भाव्नाएं सब की बने । तो मुश्किलें आसन हो ॥
कंस रावण न रहे कोई । सब कृष्ण व श्री राम हो ॥
मानव तेरे जावन में । यही सदा शुभ काम हो ॥
तेरे मन में मेरे मन में । एक ही तो राम हो -------------------------------4