Thursday, February 14, 2008

बचपन की राहें

सहज सरल बचपन की राहें , कब गुजरी कुछ पता नही ?

माँ की ममता प्यार पिता का । दो तरुवर सिर पर कहीं धुप नही ।

भूख प्यास जब नींद सताती । सिमटा आचल माँ दूध पिलाती ॥

थाप थाप कर लोरी गा कर । आ जा री निंदिया , कह सुलाती । ।

दूध दही की प्रात बेला में । बैठ जाते थे तन तान ॥

रूअना रूँ सा मुह देख । माखन मिसरी खिलाती आन ॥

घर अपने से लूदक खिसक कर । कर जाते आँगन जब पार ॥
रगड़ लग जाती जब कही घूट्नूं पर । चूम चाट देती सुख सार ॥

सांझ ढले पिता जब आते । घर कोने में हम छिप कही जाते ॥

माँ से कहते ''मुन्ना '' कहाँ है ? क्या लायें है देखो डोनां में ॥

माँ हस कहती ढूंढ लो उसको । छिपा होगा कहीं बीछोने में ॥

बर्फी जलेबी सुन मूहं पिता का । लब लब लार टपक जाती ॥

ओं अन बोल झट सामने आता । उठा लेते मुझे लगा छाती ॥

बड़ा हुआ कुछ बाल क्रिशन सा । कर जाता अनजान जब पार ॥

कुछ छोटे कुछ बड़े , अपने से । बना लेता सखा दो चार ॥

चीख चिला कर शोर मचा कर । लुका छिपी का खेले खेल ।

बट जाते दो दो टोलों में । कब्ढी खेल रहे, दंड बैठक पेल ॥

''धू धूसर" से जब सट जाते । उछल कूद कर जब थक जाते ॥

भूख सताती जब हम सब को । अपने अपने घर आ जाते ॥

पड़ लिख कर कुछ बाबु बन गए । खुच ग्वाले कुछ बने किसान ॥

मातृ भूमि की रक्षा खातिर । सनिक बन हो रहे बलिदान ॥

राम कृष्ण अर्जुन सी शक्ति । करता सारा देश अभिमान ॥

तिलक सुभाष भगत सिंह सरीखे । इन्ही से बना है देश महान ॥

सहज सरल बच्पान ---------------------------

सब कुछ ले कर बच्पान देदो । बना दो ऐसा एक विधान ॥

तुम तो सर्व शक्तिमान हो । मान लो कहना हे भगवान् ॥

सहज सरल बच्पान की ..............................................

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