Saturday, January 5, 2008

क्यों छात्र बने मनोरोगी ?

शेशव काल प्रथम सीड़ी है, खेल कूद किलकारी की ।
प्रकृति सवयम हमें सिखलाती औषधि मनोरोग बीमारी की ।

खेलने कूदने का यही समय है तन मन बुद्धि करे विकास ।
स्वचात्ता बाल सोच का , होता है पुरान विकास ॥

मनोरोगो ने घेरा है , खड़ा घोर अँधेरा है ।
पैदा होते ही बालक को , माँ बाप खूब समझाते ।
डाक्टर वकील बनने कि घुट्टी खूब पिलाते॥

रोना न सीखा हँसना न सीखा, बसतो को लाद स्कूल में ले जाना सीखा ।
प्रतियोगिताओं की आपाधापी ने बच्चौं को लगा दिया रोग,
इसी को कहते है तनाव या मनोरोग ॥

कोमल कुसम अध खिले फूल को, कंप्यूटर बनाना चाहतें है,
स्चूल वर्क, होम वर्क अभ्यास भी खूब करावातें है,

फिर भी बच्चे परीक्षाओं में कुछ हल कर नही पाते हैं ॥
इसी लिए मनोरोगी बन परीक्षाओं में घबरातें है।

चश्मा लग जाता है बच्चे को ,हो जाती है नज़र कमज़ोर ।
मनोरोगो से घिर जाता है होनहार वह छात्र किशोर ॥

प्रतियोगिताओं व कंपयूटिकरणौ से, बोधिक विकास रूक जाता है।
आधे अधूरे नासमझ ज्ञान से मन मस्तिक घबराता है ,,
बोधिक विकास करते करते छात्र मनोरोगी हो जाता है ॥

अभिभावक भी समझ न पाते , छात्र क्यों कमजोर है ॥
मनोरोगो को समझ न पाते , परीक्षाओं का जो जोर है ॥

आगे बढो आगे बढो , पढो खूब पढो, स्चूल में घर में ,tution में दिन रात पढो ।
आगे बढो आगे बढो प्रथम आने के लिए , नक़ल से, चोरी से, पैसे से हमारा नाम आगे करो।
इसी को कहते हैं मनोरोग ॥

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