हे विश्व के मानव सारे । नीले पीले गोरे काले . सब कुदरत के खेल न्यारे ॥
''global warm'' प्रदुषण के कारण अनेक । विश्व चिंता यही है एक ॥
''global warm'' प्रदुषण कि मार नही सह पायेगा जग संसार ॥
अनु परमाणु गैसौ का वेग । फँल चूका विस्फोटक तेज ॥
मानव कृत दोषों के भोगी । वन जीव पक्षी सब रोगी ॥
धरती को प्रदूषित कर डाला । भर चूका ''global warm'' का प्याला ॥
जा चढा चाँद सितारों पर । वैज्ञानिक तू पछतायेगा ॥
मत खेल प्राकृतिक साधनों से । दूषित अवशेष कहाँ छिपायेगा ?
''global warm'' के कारण अनेक । सब राष्ट्र कि धरा (earth) है एक ॥
जो विष ''भू'' ने गर्भ छिपाये । खनन खनन कर ऊपर लाये ॥
जैसे = गंधक कोयला जहेरीली गैसै । दे इंधन प्रकाश ॥
कर दिए प्रदूषित जल धरती आकाश ॥
मानव कृत दोषों के भोगी । जीव जंतु बने महा रोगी ॥
भभकी ज्वालाएं, भू गर्म हवाएं । प्राकृतिक सुख अब कैसे पाएं ॥
plastic, carbon के भरे अम्बार । है वैज्ञानिक कोई इनका उपचार ?
गल रही देखो बर्फीली चट्टानें । व्यर्थ हो जायेंगे विज्ञान के मायने ॥
मछली रे मछली, कितना पानी, डूबेगी धरती रहेगा पानी ही पानी॥
''चेतावनी''
समृद्ध राष्ट्र एवं विकसित देश । जल्दी जाओ अब तुम चेत ॥
हाथ मसलते रह जाओगे । चिडिया चुग जयेना खेत ॥
Thursday, December 27, 2007
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