बता मानवता के पुजारी ,"मानव" कहाँ छिपा बैठा है तेरा मित्र दानव ।
आधुनिकता व मानवता ने कलयुग को न रहने दिया।
पाप पुण्य स्वर्ग नरक देव दानव कुछ भी न कहने दिया ॥
धरम राज , राम राज सब पीछे हट गए ।
बीते युगों को भी न कुछ कहने दिया ॥
बोलो मानव बोलो मैं आधुनिकता हूँ ।
हसो या रोलो, मैं छाती जाऊंगी वर्त्तमान पर॥
कोई अंतर नही अब शेष निर्लज या श्रीमान पर ॥
कल यंत्रों से दूषित ,प्रदूषित कर दिया संसार को।
मानवता ने ठग लिया ,स्वस्थ विश्व बाज़ार को॥
जड़ चेतन में ना अंतर कोई रह गया ।
धन्य वर्तमान तू , यातनाएं जो सह रहा ॥
मानवता कि खूब राजनीती हो गयी ।
मानवता तू भी दुष्टिता में खो गयी॥
सुनो बापू तेरे "राम राज को", हिंसा का दांव भा रहा ।
सत्य अहिंसा को कोई गाँधी बनकर खा रहा ॥
नेता अधिकारी हुए कुशसित ,भ्रष्टाचार के बोध ये खेत ।
भय आंतक राष्ट्रध्रोह कि फसलें उग रही, स्वयं गाधी जी ले तू देख ॥
बता मानवता के पुजारी मानव कहाँ छिपा बैठा है तेरा मित्र दानव ..
Sunday, January 6, 2008
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