Aids रोगी जब कोई हो जाता , दूसरो में है रोग फेलाता ॥
एक बार जिसे Aids हो जाता , जीतेजी समझो मर जाता ॥
सक्रंगाक रोगी का खून व टीका । मत बरतो गलत तरीका ॥
''गर्भ शिशु '' किशोर जवान । लग सकता है एड्स शैतान ॥
असुरक्षित है रति क्रीडा दोष । योंन संचारित का महा रोग ॥
योंन रोग के हों जब लक्षण । तत्काल कराओ स्वास्थ्य परीक्षण ॥
मत फैले यह मौत बिमारी । जानो समझो यह एड्स महामारी ॥
गुप्तांगो की हो कोई बिमारी । हो सकती है एड्स महामारी ॥
ना कोई उपाय ना कोई तरीका । बीमारी पर चलता नही बस किसीका ॥
छिपती नही यह ''डायन'' बिमारी । एड्स खाती है बारी बारी ॥
घर ले कोई बीमारी आता । गृहस्थ जीवन बर्बाद हो जाता ॥
बच्चे '' गुलाबी खुशियों '' के फूल। मुरझाते देखे ,मिल जाते धुल ॥
परिवार स्वश्थ्य केन्द्र यह सारे । एड्स बचाव सिखाये प्यारे ॥
रेडियो टीवी व अखबार । समझा रहे हैं बारंबार ॥
गाव कसबे व शहर । एड्स का फँल चूका है कहर ॥
योहन रक्त का है यह रोग । छुआ छूत का नही है रोग ॥
परिवार स्वास्थ्य शिवरों में जाओ । सीखो एड्स बचाव सुझाव ॥
महीनों दिनों वर्षो की नही यह बात । कभी एड्स कर सके न घात ॥
विश्व कल्याण में नाम कमाओ । एड्स भगाओ एड्स भगाओ ॥
Thursday, January 24, 2008
Sunday, January 6, 2008
बता मानवता के पुजारी ,"मानव" कहाँ छिपा बैठा है तेरा मित्र दानव ।
आधुनिकता व मानवता ने कलयुग को न रहने दिया।
पाप पुण्य स्वर्ग नरक देव दानव कुछ भी न कहने दिया ॥
धरम राज , राम राज सब पीछे हट गए ।
बीते युगों को भी न कुछ कहने दिया ॥
बोलो मानव बोलो मैं आधुनिकता हूँ ।
हसो या रोलो, मैं छाती जाऊंगी वर्त्तमान पर॥
कोई अंतर नही अब शेष निर्लज या श्रीमान पर ॥
कल यंत्रों से दूषित ,प्रदूषित कर दिया संसार को।
मानवता ने ठग लिया ,स्वस्थ विश्व बाज़ार को॥
जड़ चेतन में ना अंतर कोई रह गया ।
धन्य वर्तमान तू , यातनाएं जो सह रहा ॥
मानवता कि खूब राजनीती हो गयी ।
मानवता तू भी दुष्टिता में खो गयी॥
सुनो बापू तेरे "राम राज को", हिंसा का दांव भा रहा ।
सत्य अहिंसा को कोई गाँधी बनकर खा रहा ॥
नेता अधिकारी हुए कुशसित ,भ्रष्टाचार के बोध ये खेत ।
भय आंतक राष्ट्रध्रोह कि फसलें उग रही, स्वयं गाधी जी ले तू देख ॥
बता मानवता के पुजारी मानव कहाँ छिपा बैठा है तेरा मित्र दानव ..
आधुनिकता व मानवता ने कलयुग को न रहने दिया।
पाप पुण्य स्वर्ग नरक देव दानव कुछ भी न कहने दिया ॥
धरम राज , राम राज सब पीछे हट गए ।
बीते युगों को भी न कुछ कहने दिया ॥
बोलो मानव बोलो मैं आधुनिकता हूँ ।
हसो या रोलो, मैं छाती जाऊंगी वर्त्तमान पर॥
कोई अंतर नही अब शेष निर्लज या श्रीमान पर ॥
कल यंत्रों से दूषित ,प्रदूषित कर दिया संसार को।
मानवता ने ठग लिया ,स्वस्थ विश्व बाज़ार को॥
जड़ चेतन में ना अंतर कोई रह गया ।
धन्य वर्तमान तू , यातनाएं जो सह रहा ॥
मानवता कि खूब राजनीती हो गयी ।
मानवता तू भी दुष्टिता में खो गयी॥
सुनो बापू तेरे "राम राज को", हिंसा का दांव भा रहा ।
सत्य अहिंसा को कोई गाँधी बनकर खा रहा ॥
नेता अधिकारी हुए कुशसित ,भ्रष्टाचार के बोध ये खेत ।
भय आंतक राष्ट्रध्रोह कि फसलें उग रही, स्वयं गाधी जी ले तू देख ॥
बता मानवता के पुजारी मानव कहाँ छिपा बैठा है तेरा मित्र दानव ..
Saturday, January 5, 2008
क्यों छात्र बने मनोरोगी ?
शेशव काल प्रथम सीड़ी है, खेल कूद किलकारी की ।
प्रकृति सवयम हमें सिखलाती औषधि मनोरोग बीमारी की ।
खेलने कूदने का यही समय है तन मन बुद्धि करे विकास ।
स्वचात्ता बाल सोच का , होता है पुरान विकास ॥
मनोरोगो ने घेरा है , खड़ा घोर अँधेरा है ।
पैदा होते ही बालक को , माँ बाप खूब समझाते ।
डाक्टर वकील बनने कि घुट्टी खूब पिलाते॥
रोना न सीखा हँसना न सीखा, बसतो को लाद स्कूल में ले जाना सीखा ।
प्रतियोगिताओं की आपाधापी ने बच्चौं को लगा दिया रोग,
इसी को कहते है तनाव या मनोरोग ॥
कोमल कुसम अध खिले फूल को, कंप्यूटर बनाना चाहतें है,
स्चूल वर्क, होम वर्क अभ्यास भी खूब करावातें है,
फिर भी बच्चे परीक्षाओं में कुछ हल कर नही पाते हैं ॥
इसी लिए मनोरोगी बन परीक्षाओं में घबरातें है।
चश्मा लग जाता है बच्चे को ,हो जाती है नज़र कमज़ोर ।
मनोरोगो से घिर जाता है होनहार वह छात्र किशोर ॥
प्रतियोगिताओं व कंपयूटिकरणौ से, बोधिक विकास रूक जाता है।
आधे अधूरे नासमझ ज्ञान से मन मस्तिक घबराता है ,,
बोधिक विकास करते करते छात्र मनोरोगी हो जाता है ॥
अभिभावक भी समझ न पाते , छात्र क्यों कमजोर है ॥
मनोरोगो को समझ न पाते , परीक्षाओं का जो जोर है ॥
आगे बढो आगे बढो , पढो खूब पढो, स्चूल में घर में ,tution में दिन रात पढो ।
आगे बढो आगे बढो प्रथम आने के लिए , नक़ल से, चोरी से, पैसे से हमारा नाम आगे करो।
इसी को कहते हैं मनोरोग ॥
प्रकृति सवयम हमें सिखलाती औषधि मनोरोग बीमारी की ।
खेलने कूदने का यही समय है तन मन बुद्धि करे विकास ।
स्वचात्ता बाल सोच का , होता है पुरान विकास ॥
मनोरोगो ने घेरा है , खड़ा घोर अँधेरा है ।
पैदा होते ही बालक को , माँ बाप खूब समझाते ।
डाक्टर वकील बनने कि घुट्टी खूब पिलाते॥
रोना न सीखा हँसना न सीखा, बसतो को लाद स्कूल में ले जाना सीखा ।
प्रतियोगिताओं की आपाधापी ने बच्चौं को लगा दिया रोग,
इसी को कहते है तनाव या मनोरोग ॥
कोमल कुसम अध खिले फूल को, कंप्यूटर बनाना चाहतें है,
स्चूल वर्क, होम वर्क अभ्यास भी खूब करावातें है,
फिर भी बच्चे परीक्षाओं में कुछ हल कर नही पाते हैं ॥
इसी लिए मनोरोगी बन परीक्षाओं में घबरातें है।
चश्मा लग जाता है बच्चे को ,हो जाती है नज़र कमज़ोर ।
मनोरोगो से घिर जाता है होनहार वह छात्र किशोर ॥
प्रतियोगिताओं व कंपयूटिकरणौ से, बोधिक विकास रूक जाता है।
आधे अधूरे नासमझ ज्ञान से मन मस्तिक घबराता है ,,
बोधिक विकास करते करते छात्र मनोरोगी हो जाता है ॥
अभिभावक भी समझ न पाते , छात्र क्यों कमजोर है ॥
मनोरोगो को समझ न पाते , परीक्षाओं का जो जोर है ॥
आगे बढो आगे बढो , पढो खूब पढो, स्चूल में घर में ,tution में दिन रात पढो ।
आगे बढो आगे बढो प्रथम आने के लिए , नक़ल से, चोरी से, पैसे से हमारा नाम आगे करो।
इसी को कहते हैं मनोरोग ॥
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